Monday, May 14, 2012

बस यूँ ही!!!

 चले पखेरू घरोंदा मिलन की आस लगाये...
 संध्या होले होले निशा की रही चादर बिछाए...

फुले है मस्त मोगरा , मधुर गंध बिखराए...
जलत-जलत सुर्ख गुलाब, क्यूँ है मुरझाये ???

पहेली है ये सौंदर्य की, प्रश्न पूछते निसर्ग मुस्काये...
दो जवाब तो जानू, कहते बुद्धिमान खुद को, मनुष्य बड़े आये!!!

अटखेली करति नदी, ठुमक ठुमक  बहती जाए...
सागर में मिल पानी, कौन नाम से बुलाएं ???

सुबह करे शाम से अघादी , फिर रात से पिछड जाए...
जाने कौन इनको दुसरे के जाने का समय बताये???

गीला पानी, कभी ओस चमके, वही बादल में धुन्दला जाए...
किसी किरण से फुटा इन्द्रधनुष ख़ुशी को छलकाता बाँध बन जाए???

घना है वृक्ष , वन बैठा अपनी दरी फैलाए...
अम्बर की नीली छत्री को ले, घर की छत बनायें...

मनु कब सुधि में आये, करे बंद जो कहर रहा बरपाए...
वायु में कालिक दी है पोत, पानी से ना तेरी गन्दगी धुल पाए...

बंजर हुई धरती तेरे प्रकोप से, बम-रोकेट ने तेरे त्राहि-त्राहि मचाये...
महामारी, भूचाल, सुनामी, झंझा , तुने ही तो सारे काल बुलाये...

सावधान करे है नीयति ,खोल ले चक्षु , समय बलवान बखाए...
लें शपथ , धरा को सजाएं , चल मनुज नाम को सार्थक कर जाएँ ....


                                                                                     -वर्षा 

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