Sunday, March 2, 2014

तुम याद आते हो...

बंद करुँ आँखें, ख्वाब बन जलाते हो ..

झुकाऊँ जो पलकें हया से, मुस्का के चिढ़ाते हो...

लिपट कर लग जाऊँ जो गले, तो खुद पे इतराते हो ..

आजाये जो हथेली हाथों में , तो मुझपे पूरा हक़ पाते हो ..

होठों पे मेरे रख कर वो एहसास, तन-मन पिघलते हो ..

गर्मी की चुभन हो, सर्दी की सिहरन हो, बरसात की सीलन ..

पतझड़ कि धूल हो, और बहार में कविता बन जाते हो ???

तुम ही कहो कैसे जिया जाये,जब इतनी बुरी तरह याद आते हो!!??

                                                            -वर्षा :)

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